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याभि॑: कृ॒शानु॒मस॑ने दुव॒स्यथो॑ ज॒वे याभि॒र्यूनो॒ अर्व॑न्त॒माव॑तम्। मधु॑ प्रि॒यं भ॑रथो॒ यत्स॒रड्भ्य॒स्ताभि॑रू॒ षु ऊ॒तिभि॑रश्वि॒ना ग॑तम् ॥

English Transliteration

yābhiḥ kṛśānum asane duvasyatho jave yābhir yūno arvantam āvatam | madhu priyam bharatho yat saraḍbhyas tābhir ū ṣu ūtibhir aśvinā gatam ||

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Pad Path

याभिः॑। कृ॒शानु॑म्। अस॑ने। दु॒व॒स्यथः॑। ज॒वे। याभिः॑। यूनः॑। अर्व॑न्तम्। आव॑तम्। मधु॑। प्रि॒यम्। भ॒र॒थः॒। यत्। स॒रट्ऽभ्यः॑। ताभिः॑। ऊँ॒ इति॑। सु। ऊ॒तिऽभिः॑। अ॒श्वि॒ना॒। आ। ग॒त॒म् ॥ १.११२.२१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:112» Mantra:21 | Ashtak:1» Adhyay:7» Varga:37» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:16» Mantra:21


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उन लोगों को क्या-क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अश्विना) सभा और सेना के अधीशो ! तुम दोनों (याभिः) जिन (ऊतिभिः) रक्षादि क्रियाओं से (असने) फेंकने में (कृशानम्) दुर्बल की (दुवस्यथः) सेवा करो, वा (याभिः) जिन रक्षाओं से (जवे) वेग में (यूनः) युवावस्थायुक्त वीरों (अर्वन्तम्) और घोड़े की (आवतम्) रक्षा करो (उ) और (सरड्भ्यः) युद्ध में विजय करनेवाले सेनादि जनों से (यत्) जो (प्रियम्) कामना के योग्य है उस मधु मीठे अन्न आदि पदार्थ को (भरथः) धारण करो, (ताभिः) उन रक्षाओं से युक्त होकर राज्यपालन के लिये (सु, आ, गतम्) अच्छे प्रकार आया कीजिये ॥ २१ ॥
Connotation: - राजपुरुषों को योग्य है कि दुःखों से पीड़ित प्राणियों और युवावस्थावाले स्त्री-पुरुषों की व्यभिचार से रक्षा करें और घोड़े आदि सेना के अङ्गों की रक्षा के लिये सब प्रिय वस्तु को धारण करें, प्रतिक्षण सम्हाल से सबको बढ़ाया करें ॥ २१ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तैः किं किं कार्य्यमित्याह ।

Anvay:

हे अश्विना सभासेनेशौ युवां याभिरूतिभिरसने कृशानुं दुवस्यथः। याभिर्जवे यूनोऽर्वन्तं चावतमु सरड्भ्यो यत् प्रियं तन् मधु च भरथस्ताभी राष्ट्रपालनाय स्वागतम् ॥ २१ ॥

Word-Meaning: - (याभिः) (कृशानुम्) कृषम् (असने) क्षेपणे (दुवस्यथः) परिचरतम् (जवे) वेगे (याभिः) (यूनः) यौवनस्थान् वीरान् (अर्वन्तम्) वाजिनम् (आवतम्) पालयतम् (मधु) मिष्टमन्नादिकम् (प्रियम्) (भरथः) धरतम् (यत्) (सरड्भ्यः) युद्धे विजयकर्तृसेनाजनादिभ्यः (ताभिः) इति पूर्ववत् ॥ २१ ॥
Connotation: - राजपुरुषाणां योग्यमस्ति दुःखैः कृशितान् प्राणिनो यौवनावस्थान् व्यभिचारात्पालयेयुः अश्वादिसेनाङ्गरक्षार्थं सर्वं प्रियं वस्तु संभरन्तु प्रतिक्षणं समीक्षया सर्वान् वर्धयेयुः ॥ २१ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - राजपुरुषांनी दुःखाने त्रस्त झालेल्या प्राण्यांचे व युवावस्थेतील स्त्री पुरुषांचे व्यभिचारापासून रक्षण करावे व घोडे इत्यादी सेनेतील अंगांचे रक्षण करण्यासाठी सर्व प्रिय वस्तू अन्न वगैरे धारण करून प्रत्येक क्षणी सांभाळून सर्वांची वृद्धी करावी. ॥ २१ ॥